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संगम साहित्य

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यह तमिल भाषा के संगम साहित्य संबंधी लेख है। संगम के अन्य अर्थों के लिये यहां जाएं - संगम (बहुविकल्पी)

संगम

संगम साहित्य तमिल भाषा में पांचवीं सदी ईसा पूर्व से दूसरी सदी के मध्य लिखा गया साहित्य है। इसकी रचना और संग्रहण पांड्य शासकों द्वारा मदुरै में आयोजित तीन संगम के दौरान हुई। संपूर्ण संगम साहित्य में ४७३ कवियों की २३८१ रचनाएं हैं। इन कवियों में से १०२ अनाम कवि हैं। यह साहित्य प्राचीन तमिल समाज की सांस्कृतिक, साहित्यिक, धार्मिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक अध्ययन के लिए बेहद उपयोगी हैं। इसने बाद के साहित्यिक रूढ़ियों को बहुत प्रभावित किया है। दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास के लिये संगम साहित्य की उपयोगिता अनन्य है। इस साहित्य में उस समय के तीन राजवंशों का उल्लेख मिलता है : चोल , चेर और पाण्ड्य

तमिल ईसा काल के आरंभ से ही लिखित भाषा के रूप में आ गयी थी। अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि अधिकांश संगम साहित्य की रचना ईसा काल की आरंभिक चार शताब्दियों में हुई, यद्यपि उसका अंतिम रूप से संकलन 600 ईसवी तक हुआ। राजाओं एवं सामान्तों के आश्रयाधीन सभाओं में एकत्र हुए कवियों ने तीन से चार शताब्दियों की अवधि में संगम साहित्य की रचना की। कवि, चारण, लेखक और रचनाकार दक्षिणी भारत के विभिन्न भागों से मदुरै आए। इनकी सभाओं को 'संगम' और इन सभाओं में रचित साहित्य को 'संगम साहित्य' कहा गया। इसमें तिरूवल्लूवर जैसे तमिल संतों की कृतियाँ ‘कुराल’ उल्लेखनीय हैं जिनका बाद में अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया। संगम साहित्य अनेक वीरों और वीरांगनाओं की प्रशंसा में रचित अनेक छोटी-बड़ी कविताओं का संग्रह है। ये कविताएँ धर्मसम्बन्धी नहीं है तथा ये उच्चकोटि की रचनाएँ हैं। ऐसी तीन संगम सभाएँ आयोजित हुईं। प्रथम संगम में संकलित कविताएं गुम हो गईं। दूसरे भाग की 2000 कविताएँ संकलित की गई हैं।

संगम साहित्य में 30,000 पंक्तियों की कविताएं शामिल हैं। इन्हें आठ संग्रहों में संकलित किया गया, जिन्हें 'एट्टूतोकोई' कहा गया। इनके दो मुख्य समूह हैं- पाटिनेनकिल कनाकू (18 निचले संग्रह) और पट्टूपट्टू (10 गीत)। पहले समूह को सामान्यतः दूसरे से अधिक पुराना और अपेक्षाकृत अधिक ऐतिहासिक माना जाता है। तिरुवल्लुवर की कृति 'कुराल' को तीन भागों में बांटा गया है। पहला भाग महाकाव्य, दूसरा भाग राजनीति और शासन तथा तीसरा भाग प्रेम विषयक है।

संगम साहित्य के अलावा एक रचना ‘तोलक्कापियम’ भी है। इस रचना का विषय व्याकरण और काव्य है। इसके अतिरिक्त ‘शिलाप्पदीकारम’ तथा ‘मणिमेकलई’ नामक दो महाकाव्य हैं, जिनकी रचना लगभग छठी ईसवी में की गई। पहला महाकाव्य तमिल साहित्य का सर्वोत्तम रत्न माना जाता है। प्रेमगाथा को लेकर इसकी रचना की गई है। दूसरा महाकाव्य मदुरै के अनाज व्यापारी ने लिखा था। इस प्रकार दोनों महाकाव्यों में दूसरी सदी से छठी सदी तक तमिल समाज के सामाजिक, आर्थिक जीवन का चित्राण प्राप्त होता है।दण्डी ने अवन्ति सुन्दरी कथासागर की रचना की थी।महेन्द्र वर्मन प्रथम ने मतविलासप्रहसन की रचना की थी। रन्न ने "गदा युद्ध" की रचना की थी। सोमेश्वर तृतीय ने "मानसोल्लास" की रचना की थी। [1]

मौरयोत्तर

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. दुबे, एच एन (2002). दक्षिण भारत का इतिहास. इलाहाबाद: शारदा पुस्तक भंडार. पपृ॰ 8, 9, 10.
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